Saturday 23 July 2011

SHYAM TUM MIL JAATEY


सपने मेरे सब हैं तिहारे, तेरी छवि है मेरे मन मैं,
मैं क्यों देखूं औरन की छवि, जब राधे है मेरे साथ,
कोई कहे राधे श्याम, कोई कहे मुझे राधेय,
एक ही ये नाम हुआ ,नाम ही राधे -श्याम हुआ,
श्याम कहो ये कहो राधा , दोनों पूर्णविराम हुआ.

हे श्याम तुम मुझे मिल जाते ,क्या राधा अतृप्त थीं?
शब्द मुझे बार बार आकर्षित करते हैं,
क्यों कहा राधा ने श्याम से, या शायद अपने मन से,
श्याम का अस्तित्व राधा से ही पूर्ण था, और राधा ?
एक वियोगिनी सा रूप, श्याम के स्वरुप मैं खुद को भूली हुयी,
फिर भी कहती है ..काश श्याम तुम मुझे मिल जाते

फिर वही प्रश्न क्या राधा अतृप्त थीं,
श्याम से राधा का मिलन पूर्ण नहीं था,
जब राधा अतृप्त थीं तब हमारा क्या अस्तित्व ?
मीरा का क्या अस्तित्व था ? क्या लोभ हो गया था?
हम तो तृप्त से हो जाते हैं उसके एक बार दरस करने से,
शायद भगवान् भक्तों के अधिक करीब रहना चाहते हैं,
पर राधा के क्यों नहीं ?????

क्या राधा ही स्वयं कृष्ण हैं ,या कृष्ण ही राधा हैं,
एक हैं शायद पर कैसे, राधा ने कहा था ,श्याम तुम मिल जाते..
हम कभी नहीं मिले , माया से लिप्त हैं श्याम को देखा नहीं,
पर राधा भी तो माया हैं श्याम की ,,,पर श्याम ने कहा नहीं..
राधे तुम मुझसे मिल जाती ?

No comments:

Post a Comment