Saturday 30 July 2011

"दुश्मनी"


दुश्मनी की ये  बाबत कहें क्या कहें ,
हमने खुद से ही खुद को अलग कर लिया,
बाड़ से सब अलग, दूरियां बढ़ गयी,
जो थे रिश्ते सभी, बंदूकें तन गयी,

आँख के आंसू सूखे, जमी नप गयी.
ये तुम्हारा हमारा, हमीं हैं नहीं,

अब तो लम्हों ने जो फैसला कर दिया,
सदियों को भी रिवाजों से सहना पडा,
कुछ चले भी अगर, रोक कर फिर वहीं,
उनके पैरों को तालों से सीना पडा ,

दुश्मनी दुश्मनी क्या कोई जात है?
ये दिन है यहाँ वो कहें रात है,
इतनी खाई बड़ी , जो पटेगी नहीं,
कितनी मिट्टी पडी पर अड़ेगी वहीं,
दूर से बस हवा को सलामी ही दो,
वो जो अपना कभी ,अब पयामी तो दो,
वो भी खुश है वहां , हम भी कोशिश करें,
दुश्मनी  को ख़तम , दोस्ती नाम दें.

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