Monday 25 July 2011

******RUDALI*******

"रुदाली"
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कहीं आँखों का खेल भी हो सकता है,
आंसुओं का भी मोल हो सकता है,
कुछ पलों का हिसाब किसी के नाम,
अविरल आंसू ,मजबूरियों की किताब,

ढेह जाते है सब धेले के टुकडे से,
आँचल है फटा है मेले मैं,
काया बस सांस है चलती बस,
तन बिकता जहां के रेले मैं,

दुःख से ही इनका रिश्ता ही,
आँसू और मन भी बिकता है,
धड़कन है तेज धौकनी सा,
अर्पण तर्पण सब बिकता है,

अब कृष्ण कहाँ जो आयेंगे,
आंसू को पोंछ कर जायेंगे,
कल रोई थी वो जार जार,
फटते हैं वस्त्र सिल जायेंगे.

घर पर है शैया मरणासन्न,
आश्न्वित नहीं कभी था मन,
पैसे की चिंता कहाँ करे,
कुछ रूदन सी व्यंजना भरे,

उसके दुःख से आप्लावित हो,
मन थोडा आह्लादित हो,(कुछ पैसे मिलेंगे )
तिल तिल सुहाग उसका जख्मी,
निकली घर से आशान्वित हो,

आंसू की रेखा जम सी गयी,
खेतों पर मेड़ बनी जैसे,
सूखा है खेत बी पानी के,
मेड़ों पर कृषक मरा जैसे,

क्या जीवन की छनभंगुरता,
क्या उसके लिए उम्मीद बनी?
आंसू से भरी पर खुद की नहीं
इश्वर की नियति मजबूर हुयी.




1 comment:

  1. मार्मिक व्यथा शब्दों का जादू जो जर्जर जमीर को हिलाता है ---रुदाली एक पक्ष है व्यक्ति के व्यक्तित्व का ---मर्म को खोजने जब जाते है ----सत्य उभर --उभर आता है ---करुना की अनोखी अनुभूति जो शब्दों की तुलिका से रंगी गयी ---- बहुत सुंदर अनुभूति ---हम आंदोलित है -.....

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