खुशबू स्वछन्द है...स्वतंत्र है...
by Suman Mishra on Wednesday, 8 February 2012 at 13:22 ·
खुशबू स्वछन्द है ..उड़ कर कहीं भी जा सकती है,
कोई डाली ,कोई शाख इसे बाँध कर रख नहीं सकती,
इसे मन की डोर से बाँध सकते हो तो बाँध लो,
किसी भी उड़ान के लिए हमेशा तैयार ये खुशबू
ये हवाएं जो संवाहक हैं इसकी,
एक गहरे से रिश्ते से बंधी हुयी,
कोई अलग नहीं कर सकता इन्हें
कोई बंधन नहीं जकड़न नहीं
लिखते लिखते अचानक ये ख़याल आया,
उसकी खुशबू का झोंका कुछ कहा उसने
कैसे ये बन्धनों के बिना जीती है
ऐसे स्वछन्द जहा तहां फिरा करती है
ऐसी बातों पे कभी गौर करें
कोई जकड़न नहीं फिर भी कभी मायूस भी है
ये हवाएं जो रुकी तो इनका क्या होगा,
उसकी खुशबू का सिरा कहाँ पे रुका होगा,
ये तो अनजान से हैं भाव मेरे कुछ तो है,
बहुत गहरी सी मगर ,काश मैं खुशबू होती
बड़ी खामोश सी सरगोशी मेरे बारे में
कोई कहता और उसने भी सूनी होती,
मैं भी बहती नदी के तीर और बागों में
कहीं गुलशन के सिरहाने कही ताडागों में
मगर ना रूप और ना रंग कोई समझेगा,
बस एक हल्की सी दस्तक..हुयी वो सोचेगा.
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