Friday, 10 February 2012

कितने किरदार थे कहानी में - एक किरदार मुझे अपना लगा,,


कितने किरदार थे कहानी में - एक किरदार मुझे अपना लगा,,

by Suman Mishra on Monday, 6 February 2012 at 17:22 ·



कितने किरदार थे कहानी में, एक किरदार मुझे अपना लगा,
उसको देखा था मैंने मंचों पर, जाने कितने किस्से  प्रपंचों पर
उसके अभिनय ने मुझसे पूछ लिया, बोलो कैसा लगा मैं उसने कहा
मैं बोल से कहाँ बयान करू, मगर किरदार मुझे खुद का लगा,



जाने कितनी कहानी पढ़ डाली, उसके भावों में ढली सोच लिया
उसको कैसे पता ये मेरा रूतबा है, वो जो पन्नो में छुपा बैठा है
उसका किरदार जो करीब सा है, मेरी गजलों को गुनगुनाता सा
नीद की इक ज़रा खुमारी सी, मुझे किरदार बहुत अच्छा लगा,



एक सूनी सी झोपडी में वो, सहमी सहमी सी एक मंजर सी,
उस कहानी की नायिका कह लो, अश्रु से भीगी एक डली सी वो
वो जो किरदार निभाया उसने, उसके जैसी यहाँ पे कितनी है,
मगर घर में बड़ा अन्धेरा है, रौशनी नाम की तहरीरे हैं

उसको देखा बहुत सी नज़रों ने, अपने अंदाज बया देने को
कोई कहता है खूबसूरत है, कोई उसकी अदा पे मरता है
उसके किरदार में ढली है वो, उसके मन में बड़ा अन्धेरा है
एक ही उम्र वो भी मिटटी में, मुझे किरदार बहुत अच्छा लगा,


बड़ी शिद्दत से इन्तजार किया , अपनी अपनी कला से प्यार किया
मगर किरदार भी तो इंसा के ,इसी समाज से उधार लिया,
आज हम जी रहे किरदारों को, छोटे सपने बड़े उपहारों में
एक दुनिया यहाँ जो बाहर है, एक दुनिया मेरे किरदारों में


एक छोटी सी बन गयी आशा, आज मंचों पे मैंने देख लिया

ये रूप लगते छलावा जैसे, मगर ये जी रहे सच में जैसे,
हम ने अभी अभी देखी दुनिया, ली पहली सांस बस बे-खबरी से
मगर रास्ता बड़ा ऊंचा नीचा -नहीं ये मंच के तख्ते सा,


जो भी सब किरदार ही हैं,,,,मुझे किरदार बहुत अच्छा लगा,

1 comment:

  1. आपकी पेंटीग और भी बहूत कुछ कह जाती
    पर इसे मै बयां नही कर पाउंगा

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