सड़क के किनारे रखे सूखे पत्तों का ढेर,....आखिर नियति एक ही है
by Suman Mishra on Monday, 13 February 2012 at 17:37 ·
![](https://fbcdn-sphotos-a.akamaihd.net/hphotos-ak-snc7/395754_322192704482466_100000752187904_771912_941012699_n.jpg)
सड़क के किनारे सूखे पत्तों का ढेर...
पास के ही वृछ की शाखा से उड़ते हुए...
सड़क कर्मचारी ने उन्हें इकठा कर दिया एक किनारे
एक बड़ा ढेर तैयार हो गया,,
जब तक जीवन था गतिमान नहीं थे
शाख से लगकर हवा के प्रवाह से
उसकी दिशा को बताते थे ..खैर वो तो अब भी है
![](https://fbcdn-sphotos-a.akamaihd.net/hphotos-ak-ash4/s720x720/404809_322191871149216_100000752187904_771910_1021444497_n.jpg)
सुबह सूरज तप्त होकर दग्ध होकर ताप देता,
तब तलक ये ढेर बनकर पड़े थे यूँही किनारे,
शाम की सर्दी की ठिठुरन लोगों का हुजूम देखो
इनकी अंत्येष्टि हुयी है तापते सब हाथ देखो
सोचती हूँ ! फर्क क्या है हम्मे और इनमे ज़रा सा,
अंत तो अपना भी ऐसा, दृश्य पर कर लो नज़र ये,
बस येही अब सोचना है गति नहीं तो फर्क क्या है
हम भी इनकी ही तरह अंत्येष्टि के द्वार पर हैं
![](https://fbcdn-sphotos-a.akamaihd.net/hphotos-ak-snc7/418007_322192927815777_100000752187904_771913_1193624135_n.jpg)
विषय लेखन बहुत सा है, मगर सब का अंत एक ही,
आज हंस कर टालना ही , दिल की धड़कन बोल पड़ती
भागना क्या सोचने से, जो विधि वो अटल ही है,
देह का सुख अपना अपना, मानवों या वृछ में हो
कही पर ये पात उड़ते, कही कोपल खिल रही है,
कौन याद रखेगा इनको, शाख इनकी वही तो है,
नियति सबकी एक सी है, मत करो उससे ढिठाई
ढेर पत्तों के हो या, जीवन किसी का दे दुहाई ,,,
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