है गुलाम सोने की चिड़िया --या बोलो ये स्वतंत्र गरीबी
by Suman Mishra on Wednesday, 25 January 2012 at 00:07 ·
अभी अधूरी दास्तान है, अभी देश आजाद कहाँ है
पडी बिवाई जितनी तल में, माँ का अभी आह्वान कहाँ है
अभी तलक वो सह ही रही है, ताना शाहों की करतूतें
रोज सुबह वो सूर्य को पूजे, छितिज़ से वो अम्बर पर रीझे
अब कपोल कल्पित सी बातें माँ का दुःख या सुख क्या बोलो,
हरित करो धरती को त्रिन से, या अफीम के गुच्छे तोलो,
सींच दो इसको निर्मल जल से, या लाशो के बीज ही बो दो,
इसके आंसू कौन देखता, ये दहली तो जीवन खो दो,
कहते हैं सब आधुनिका है आज की नारी के क्या कहने,
सड़कों पर फिरती हैं जो ये, किसी की माँ और किसीकी बहने,
कोई नज़र कुत्सित सी बहके, कोई अपनी दया दिखाए,
क्या समाज क्या लोग यहाँ पर, आजादी के नारे गाये ?
किसपर कितना फख्र करोगे, कोई धनी तो कहीं गरीबी,
एक तराजू नहीं बराबर , कानूनों की आँख जो तोले,
पलड़ा भारी ,जेब हो भारी , लाठी भैंस की एक कहानी
आये दिन बस वारदात से शुरू हुयी हर एक जुबानी
सोने की चिड़िया वो कहाँ है, जिसके बच्चे भूखों मरते,
हाथों में कूड़े की टोकरी, जूठन पर हैं बसर वो करते,
किसी वर्ग की क्या मर्यादा, देश की संस्कृति के क्या माने
सब उलझे है जाती वाद में , इंसानों की कदर क्या जाने
वो मुस्लिम है, हम हिन्दू हैं वोट बनता बस जाति की खातिर
मानवता या भारतीय का श्रेय नहीं कुछ ये हैं शातिर,
अपनी अपनी झोली भरना, घर भरकर अब करो अलविदा
"वन्दे मातरम्" में क्या रखा.हिन्दू मूल मंत्र जो ठहरा ..जय हिंद,,,,
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