फर्क क्या है इस नए सूरज में ...जो इतना शोर शराबा
by Suman Mishra on Monday, 2 January 2012 at 00:35 ·
क्या हम बदलेंगे ज़रा सा भी, या हमारी सोच बदलेगी ,
मुस्करा कर मिलेंगे आज , मगर क्या हम भी बदलेंगे ,
वो उसने कुछ कहा मुझसे, नजर के एक तकाजे से,
मगर हमने येही समझा, अरे ये बात ऐसे ही....
कई बातों की परिभाषा, कई रातों की मजलिस हो,
नहीं कोई समझता है, गैर वाजिब जरूरी हो,
जो हमने खुद से ही सुनकर ,किया ख़ारिज उसे ऐसे,
ये सूरज कल भी निकला था, आज ये ढक गया कैसे,
हुआ होगा सवेरा भी, जरूरी भी हैं सौगातें
येही तो बात लम्हे की, वो कल था आज हम बांटे ,
हमी हम तुम तुम्हीं निकले, ना हम तुम बन सके ऐसे,
मगर एक नयी सुबह जैसे, बदल जाती है औकाते
जो सोचा है फख्र से ही, करेंगे हम भी मन से ही..
हुआ पूरा तो पूछेंगे कहो कैसी रही दिल से,
अगर हम साथ में होंगे, या मिलना राह में गर तुम,
नहीं तो भूलना भी मत, खोज लेना भीड़ में से.
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