Tuesday, 14 February 2012

मेरा प्यार


मेरा प्यार

by Suman Mishra on Tuesday, 14 February 2012 at 17:45 ·


मेरा प्यार 
बस शब्द नहीं है ये जीवन का सार है बस
ये साँसों का बंधन है बस साथ साथ ही चलता है
ये तरंग संगीत के जैसा,हर रागों की सरगम सी
शब्दों की बंसी बजती है ,बोल के भाव तरन्नुम से


हम तो पथिक हैं इस जग में दो मूल भाव से रहते हैं,
एक सहारा प्रेम का जिसको आलिंगन हम करते हैं
कह लो सुन लो कितनी बातें शब्द ये मेरा शाश्वत है
मेरा प्यार तो मेरा ही है, ये बस मेरी चाहत है,



कहते हैं सब प्रेम जटिल है ये आहत है फूलों से,
अगर कभी ऐसा हो जाए , पूछ ही लेंगे शूलों से,
दर्द नहीं तो प्रेम ये कैसा, इसकी मंजिल कहाँ मिली
बहते फूल सरित में जैसे, मिल लेना तुम लहरों से


एक अग्नि और एक चांदनी फिर भी मेल तो होता है
सूरज के आगे जो चाँद है तपिश से वो खुश होता है
प्रेम अधर से पुलकित होकर कृष्ण सदा मुस्काते थे
वो मनमोहन राधे वश में दो वो कहाँ रह पाते थे


नहीं नुमाइश ना ही पर्दा प्रेम शब्द निर्झर जल सा
ये निश्छल है सर्व विदित है , फिर मैलापन क्यों फैला
भावों के सौदागर बन कर प्रेम तराजू तोल ज़रा ,
प्रेम छितिज़ में हम दोनों बस कहाँ भेद तुम कहो जरा

कुछ निरीह पल प्रेम में बसता,दूरी और तड़प कह लो,
फिर भी प्रेम सफ़र कैसे भी पूरा अपना कर लेगा
मीलों की दूरी हो या प्रिय साथ में हो पल कैसा भी,
मेरा प्यार तो मेरा ही है , नहीं किसी से ये तुलना

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