Friday, 10 February 2012

कशिश...जाने ये क्या तहजीब है दिलों की


कशिश...जाने ये क्या तहजीब है दिलों की

by Suman Mishra on Sunday, 22 January 2012 at 16:14 ·

दिलों की नजदीकियां , दिलों की दूरियां
जाने कितने अफ़साने लिखे जाते हैं,
वो मिले न मिले, कुछ कहे या न कहे
कितने परवानो के पंख भी जल जाते हैं,

इतनी कवायदें लिखी है मुहब्बत पर यूँ,
फिर भी दिन रात लिखी जा रही हैं बिना रुके,
जीने हैं लोग उनकी उतनी कहानिया बनती
कभी कभी तो एक से ही कई और मुहब्बत छनती (हा हा हा )

अब तो वो बैठ गए सच की कुर्सी लेकर
कुछ कही झूठ और कुछ में सही बात जंचती
कितनी आहों पे बसा दिल का शामियाना ये,r
किसी को फूल दिया, किसी से कसमों की बाजी  लगती


चलो मिलाएं  हाथ ज़रा हाथ की नरमी  देखें
कुछ नहीं तो इनकी लकीरों से नाप तोल करें,
दिलों को मिलना आसानी से गवारा तो नहीं,
कहीं उस  दिल को अपने मन से टटोल कर देखें


तो रही बात ये "कशिश "जो ज़रा अजब सी है,
नहीं मिला जो उसी के पीछे भाग रहा
कितनी रफ़्तार इसकी , कोई सीमा नहीं इसकी,
मिले या ना ही मिले , सोचने में क्या जाता है,,


ये मन धरती और आकाश ऐसे खुद में समेटे हुए है,
जाने कितने चिरागों की रोशनी में लिपटा,
फिर भी सूरज की तपिश बाकी है इन जज्बों में
चाँद की चांदनी से जल रहा जाने कबसे.


नहीं ख्वाहिश ही बची अब तो मौन का वश है,

कशिश का पहरा जबरदस्त पडा रहता है.
साथ में चलने से क्या फ़ायदा बस रहने दो..
एक पर्दा नकाब दिल पे पडा रहने दो..

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