अलहदा मन...मगर फुर्सत
by Suman Mishra on Sunday, 1 January 2012 at 19:02 ·
कहीं कुछ भी , कहीं कुछ तो,
कही कुछ बोल फुर्सत के,
भरा है तृप्त भावों से,
अलहदा मन ...मगर फुर्सत
ना जाने बीत जाता है,
समय का पंख उड़ता है,
ये हाथो में नहीं टिकता,
अलहदा मन....मगर फुर्सत.
सफर कितने तमाम से,
ये पन्नो पर उतारे हैं,
वो जो कुछ एक अकेला है,
अलहदा मन...मगर फुर्सत
अकेले हम चलेंगे अब,
मुझे साथी नहीं लेना,
नहीं जरुअत ज़माने की
अलहदा मन ,,,मगर फुर्सत
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