Friday, 10 February 2012

हमारा आदेश सुनो....


हमारा आदेश सुनो....

by Suman Mishra on Thursday, 26 January 2012 at 00:29 ·


मन  मसोसता हिन्दुस्तानी, तुला हुआ बे-भाव कही पर,
बहुत मनाये त्योहारों को , अब तो हाथ है खाली कबसे,
हर पल के हिसाब से जीवन को रखा गिरवी है कहीं पर,
नकली मुस्कानों को ओढे घर में घुसता शाम ढले पर..

ये पतंग सा उड़ा तिरंगा, फूल गिरे इसके आँचल से
हम लें शपथ समछ में इसके , देश प्रेम व्रत नाम हो इसके,
क्या होगा जब कर्णधार ही अपने पथ को भ्रमित कर रहे,
पैसे की भाषा है इनकी, प्रेम नहीं अभिमान ढो रहे.


सुनो नहीं कमजोर हैं अब हम, नहीं नुमाइश ताकत की,
कितनी चोर-बाजारी कर लो, खबर हमें हर आहट की,
बस संयम है येही प्रतिज्ञा नहीं खोखला होगा ये,
अब आदेश हमारा होगा, लोकतंत्र का नारा ये,,,


जन जन के आंसू पोंछेंगे,कोई भूखा नहीं रहे,
सड़कों और गलियों में बचपन ख़ाक छानता नहीं फिरे,
हर हाथों में श्रम की पूँजी, उसका सब सत्कार करें,
नहीं भरेंगे रिश्वत से हम , इसका सब बहिष्कार करें


दुःख होता है गर बेबस के आंसू धरा पे गिरते हैं,
येही बेबसी जाने कितने जन का जीवन हरते हैं,
क्यों बेबस इंसान यहाँ पर, और भरा घर नेता का,
वो खेले सोने चांदी से, फूटे बर्तन जनता का.

vote हो या मत तभी मिलेगा जब अधिकार हमारा हो
हम चाहें तो कुर्सी ले ले , निर्णय सभी हमारा हो,
ये माने आदेश हमारा, हम जनता ये सेवक है,
तभी सही गणतंत्र के माने,  जन गन मन तुम्हारा हो,
                        *****

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