कल हल्की बरसात की खुशबू आज महक इस मिटटी में है
by Suman Mishra on Thursday, 22 December 2011 at 00:35 ·
कल हल्की सी बारिश थी,कुछ बूँदें गिनकर रख ली थीं,
पर जब तक कुछ मुट्ठी में टिकी,जाने कितनी फिर बरस गयी,
सोंधी माटी की खुशबू से मन जाने कैसे बहक गया,
सारे उपवन की सुरभि येही , इस माटी मन में बिखर गयी
क्या होता है इस माटी में , सूखी पैरों के साथ चले,
अम्बर की बूंदों से भीगी, खुशबू बन कर ये महक बने
कुछ एहसासों के भावों में , कुछ मिलन प्रेम की छावों में
टप-टप बूंदों की ताल से ये सोयी कलियों की भाँती खिले.
प्रेमी विह्वल मन भीग भीग सूखा है कितनी बार यहाँ,
इस रूप राशि की मन सुगंध से बहका खर पतवार यहाँ,
हर पत्ते से छम छम की ध्वनि, और बूंदों का अपना आलाप,
ये रागों से सब बुना जाल, भैरवी तान , और ताल जमा,
बस एक बार इन बूँद और माटी की बात पता कर लूं
जो मिलकर महक महक जाती, जल तरंग सा क्यों जाल इनका
हल्की सी चोट और सुर बहाव,सब झंकृत पोर प्रकृति कोना
कुछ एहसासों में बस जाए, वो अम्बर और बूद झरना,
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