दीवालों पर उगे फूल भी सुरभित होते हैं...
by Suman Mishra on Monday, 19 December 2011 at 16:42 ·
ऐसे तो बागानों में फूलों की है फेहरिस्त ,
माली की देखभाल बड़ी कारगर सी हो,
हर समय उनपे नज़रें, खुशबू है बेपरवाह,
दीवालों की बदिशें भी कहाँ रोक सकी हैं,
उडती है ये मद-मस्त नहीं इनका है ब्यापार,
तोड़ा जो शाख से तभी तो होंगे जिम्मेदार,
नजरों से मुलाक़ात बहुत बार हुयी है,
फूलों की भी नज़रें करम मुझपे भी पडी थीं.
दीवारों पे जमाई है इन्होने ज़रा मजलिस,
मुझको बहुत है फख्र नहीं कोई भी बंदिश,
बरसात की बूदों से इनका वास्ता रहा,
शबनम को ये पीकर हंसी का रास्ता खुला.
ऐसे तो ये दीवार बड़ी ही कठोर है,
इनपे पडी जो छाप जंग की मशहूर है,
बारूद की महक को जज्ब फूल ने लिया,
वीरों के रक्त बूँद इनमे ही मशगूल है.
अब याद है तो बस इनकी रोशनी के रंग,
पंखों की ना आवाज किसी तितली के हो संग,
बस रंग दे दिया है पुराणी दीवारों को,
पत्थर नहीं ये फूल हैं, खुसबू के ये पाबन्द...
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