Friday, 10 February 2012


ये तनहा वन्हा क्या है यार...मस्ती में रहो..रोका किसने,,,

by Suman Mishra on Monday, 30 January 2012 at 15:55 ·


वो बोला था कुछ हलके से, उसे भूख नहीं लगती है अब
हर वक्त वो खोया रहता है, दिन में भी सोया रहता है
सब सोचते है कुछ गम में है, पर याद में आखें भी नम हैं
अब क्या कहने हैं वजन घटा , पर मुझे भूख बहुत लगती है


ये रोग समझ नहीं आता है, ये प्रेम और ये भूख है क्या
कैफे में देखो तो हरदम वो पिज्जा खूब उडाती है
कहती है डेटिंग पे गयी, अब प्यार ही तो ये बोलेंगे,
खा लो भैया पेट भर के, कल येही वजन  को तोलेंगे,




अब जमी बची नहीं धरती पर, मिलने तो चाँद पर जाना है
रुक जाओ मांग लो चाँद ज़रा, कुछ तारे तोड़ कर लाना है
बातों की डींग तो ना पूछो रिचार्जे करा के बात करो,
मोबाइल के बैलेंस में हरदम चिंता में ही बस घुलना है,

फेसबुक पर एक लड़की की पोस्ट, well ! शादी शुदा तो है ही वो,
फोटो के पीछे लड़े बहुत , दुश्मनी मोल ली खुद से ही
मैंने सोचा वो कहाँ गए करते थे ऊंची बात बहुत ,
अब दीखते नहीं है काहे वो, संन्यास लिया क्या FB से ?


क्या करें ज़माना अजब गजब, बातों की मारा मारी है,
तस्वीरों की दुनिया है ये, ये एक अजब बीमारी है,
स्कूटर की चाबी लेकर हाथों में गोल घुमाते हैं
कहते हैं कार को पार्क किया, बस मीटिंग कर के आते हैं

सन्डे को सोना देर सही, पूरे हफ्ते का दोष दूर,
कल तलक जो ब्यस्त थे बिजनेस में, हैं आज बने वो महा बोर
घर में लगते हैं महा संत , दुनिया दारी से बहुत दूर,
वनवासी से बैठे ऐसे , शर्मीले है दिल से मजबूर ,

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