पुरानी इबारतों को सहेजना ...नजर जो पडी "आज" वो दिन आज में बदल गया
by Suman Mishra on Thursday, 2 February 2012 at 16:00 ·
कुछ पुराने ख़त ,कुछ पुराने कॉपी के पन्ने
और उसपर लिखी इबारती तस्वीर
मस्तिष्क की गंथियाँ जो गुथ्ही बन चुकी थी
खुद बा खुद खुलती चली जाती है,
कभी कभी कुछ शब्द ऐसे सामने पड़ते हैं
जो अब इस दुनिया में नहीं है
मन करता है इन शब्दों के सहारे उन्हें
बुला लूं उस जहां से जिस जहां से वापस नहीं आये
कभी कभी ये शब्द हमें वापस उस जगह ले जाते हैं
जहां हमने अपनी समझ के शब्दों पर कुछ अंक हासिल किये थे
शायद ये शब्द एक आवाज हैं, कल का जो बीत गया आइना है
आज इन शब्दों में वो बात नहीं है, आज तो बस लेखा जोखा है
बस लेखा जोखा है,,,,,खाली .....कुछ रुपयों की गिनती ,,बस
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