मन एक पंछी कहाँ है ठहरा ?
by Suman Mishra on Monday, 2 January 2012 at 01:16 ·
मन एक पंछी कहाँ है ठहरा, कहाँ ठिकाना है एक दिल का,
ना जाने कितने बसे हैं इसमें, मगर वो एक ही नहीं मिला है,
बनाए उसने कई ठिकाने , वो एक ठिकाना अभी अधूरा,
इसीलिए ये उड़ा अभी तक, नहीं है कोई मन ठौर इसका.
सफ़र में हूँ मैं , सफ़र है जारी, सफ़र तमामो उम्र लिखा है,
कहीं तो मंजिल वो अपनी होगी, जिसे कहीं सपनो में बुना है,
हैं इसके धागे बड़े ही रंगी, गुलों से सुन्दर ये आशियाँ है,
मगर अधूरी है सोच अपनी, अभी तो पंछी पर के बिना है.
कहीं पे सुबहो की लालिमा है, कहीं पे यूँ चांदनी फिर से बिखरी,
है चक्र जीवन , घुमा फिरा कर ,जहां से चलना वही खडा है,
वो दूर पर ! देखो आ रहा है, थकी है आँखें यूँ राह तक कर,
वो पास आकर !बदल रहा है कही ये रस्ता बदल गया है ?
है भीड़ इतनी ,जगह बियावां,है शोर कितना ,नहीं सुना है,
मेरी पुकारों को अनसुना कर, वो और कितनो से जा मिला है,
हक़ तो नहीं है, मगर ये सच है, सच ही लगा है,
मन एक पंछी उड़ा जो एक पल..नहीं है मिलता बस आसरा है,,,
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