अभी अभी तो पंख लगे हैं...उड़ना जाने कब होगा (मुझे शायद अच्छी लगी)
by Suman Mishra on Thursday, 19 January 2012 at 17:52 ·
अभी अभी तो पंख लगे हैं , उड़ना जाने कब होगा,
देखी है बस जरा सी दुनिया, आगे जाना कब होगा
एक दायरा छोटा सा ही, पर अनजाने लोग बहुत,
पहला कदम ही रखा अब तक, उड़ना कैसे करू भला.
आँखें बंद शांत कौतूहल, बस गति जानी हल्की सी,
खोल दिया तो दिग-विराट सा ,हर जीवन तहरीरों सी
कितना फैलाऊ पंखों को, कितनी दूरी तयं करनी
रस्तों की पहचान नहीं है, कौन प्रदर्शक आगे हो.
बहुत सी दुविधा , पता है सूना,कोई तो आगे आये,
नहीं चाहिए मुझे कारवां, साथी वो बस बन जाए,
आधी दुनिया हम देखेंगे , आधी उसकी नजरों से,
मन की गति से जा पहुंचेंगे नभ तल के हर कोने में
मन की तो उड़ान ऊंची है ,पंखों की गति धीमी है
समय उम्र और पल की बातें, खुद से मन पर लिख ली हैं,
एक ठौर बस , सोच ले मन तू अब आगे क्या करना है
पंख अभी तो उगे नहीं है, धरती पर ही रहना है,,
उडी अगर जो कुछ गति लेकर विहगों के संग बन पाखी
धरती से दूरी तो जो भी , नभ की सीमा ना नापी,
नभ का क्या वीरान बहुत है, खाली शब्दकोष है ये,
होगा भी तो इसका रिश्ता वही छितिज़ जैसा होगा
मुझे लौटना अब अपनों में नहीं अधर में रहना है
शोर सही पर ये नितांत तो मुझको ना रहने देगा,
आऊँ गर तो अपना लेना , तोड़ रही हूँ पंखों को ,
बस क़दमों का साथ चाहिए , पंख नहीं उड़ना मुझको,,,
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