ये सूरज के अकेले का सफ़र क्यों ? ...
by Suman Mishra on Wednesday, 21 December 2011 at 23:42 ·
माना की सूरज है नाम, रौशनी का साथ,
सूरज और रोशनी ....कौन है ये रोशनी ?
रोशनी के बिना सूरज के नाम का क्या औचित्य है ?
पर चाँद और चादनी तो सूरज और रोशनी क्यों नही?
लोग चाद और चांदनी पे जाने कितने उलाहने लगाते हैं,
नज्मों और शायरी का सिलसिला बेहिसाब लिखी जाती है,
क्यों.....क्योंकि चाँद और चांदनी के समय लोग खाली होते हैं
शायद चाँद और चांदनी को देखकर कोई अलग सा एहसास होता है,,,
अब चलो आँखें खुली , क्या स्वप्न से मिलके हँसे,
क्या सत्य सा कुछ दिखा था, मन मीत मन में जब कहे,
कुछ रोशनी थी राह में? या शबनमों की बेड़ियाँ ?
छूते ही जब बिखर गयी, हल्की उबासी ले उडी...
पर बात या कुछ और है ये इतना अकेला भला क्यों,
दुनिया की इस भीड़ में ,आता बड़ा चुपचाप सा,
हर दिशा में बस शोर हो, पर ये अकेला क्यों रहा,
हर सफ़र में बस रोशनी, पे ये अकेला क्यों जला.
इन्तजार के लिए ना रोशनी का साथ ना चांदनी का साथ,
बस पल का इन्तजार ,जिसकी आहट किसी रोशनी से कम नहीं ,
अजीब सी खुशी का आवरण जो आता है चला जाता है
ट्रेन की सीटी की तरह ,,,किसी के आने का आगाज
मगर प्रश्न मेरा वहीं है.. ये सूरज जब आता है,..अकेला,
लोग उसके साथ साथ चलते हैं ,खुशी, गम, अकेले ,साथ,
सूरज और ये जहां...वो अकेला पर सब उसके साथ ..
और ये चाँद ..इतने सितारों को साथ लाता है अपने....
मगर.....उसकी दनिया में वो और उसके सितारे.,,,,
हम अपनी दुनिया में..स्वप्न और नीद के आगोश में...
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