सरे राह - सरे आम,,,,,बस आम आदमी
by Suman Mishra on Wednesday, 18 January 2012 at 12:43 ·
बिखरा है चारों तरफ बस आम आदमी.
किफायती और करीने से सजा आम आदमी,
दुनिया में कुछ ना मिले किसी को कहीं अगर,
हर तरफ रु-बरू है बस ये आम आदमी,
आज इस शब्द पर क्या लिखूं ..येही शब्द सबसे जादा इंसान के करीब है,
हर इंसान इस आम आदमी के साथ चलता है,...और आम आदमी शब्द
साधारण होते हुए भी असाधारण है ,,,क्यों इसकी वजह से तबकों और
रुत्बों की नुमाइश होती है,,या लोग अपनी नुमाइश करते हैं,,,,
सिलवटें हैं चेहरों पर या डूबा है सोच में ,
ना जाने कितने पन्ने फाड़े लिख के यहाँ वहाँ,
मंजिल का रास्ता नहीं दिखता यूँ ही उसे,
कहने को खैर-ख्वाह खड़े रास्तों में हैं
ये आम आदमी है तादाद में बड़ा ,
ये एक नहीं, दो नहीं है भीड़ से जुड़ा
हर आम आदमी है ख्वाहिश का पुलिंदा
मजबूरियों में जी रहा बस पर कटा परिंदा
कितने हैं शिलालेख और कितनी सभ्यता,
बदले हैं युग कितने भी मगर ये नहीं बदला,
कितनी ही रवानगी लिखी इनपर मगर बेकार,
बढ़ता ही जा रहा है काफिला हो बे-परवाह
चल अब बदल के रख दे कुछ परिभाषा अलग सी,
ये आम और ये ख़ास ख़तम हो जिरह से अब
पंछी , हवा और रोशनी सब एक से ही हैं,
फिर हम सभी में बंटा जिस्म बस आम आदमी,,,
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