खामोश निगाहों का सौदा
by Suman Mishra on Wednesday, 4 January 2012 at 01:12 ·
जलती बुझती चिंगारी सी, नम आँखों से दो बूँद थमी,
गालों पे ढलक कर सूख गयी, बस याद की बाती जलती रही,
रूई के फाहों से नम हो, मन सिंचित था अब सूख गया,
बरसात से तर अब मन कहता, चल आज जलें इस पानी में,
कुछ दूर तलक ये आस गयी, कुछ दूर तलक जब तक वो दिखा,
अब लौट के आ ओ ! मन मेरे, इन यादों को पंख लगा,
लेगें उधार हम सपनो से, उड़कर पहुंचेंगे पास में जब,
चंचलता मन की छिपी कहाँ, ये तो बहती है सरित तरह
खामोश निगाहों का सौदा, जाने कितनी कीमत आंकी,
कुछ साँसे हैं कुछ बातें हैं कुछ नब्ज़ की धड़कन है जांची .
कुछ गिनती की है उम्र बची, अब क्या जीना और क्या मरना
चलती फिरती तस्वीरों से ये रंगमंच पर खुद सजना,
खामोशी कितनी गहरी है, पर वो ही एक जो उसका है,
क्यों दूर गया ,बस दूर रहा, ख़ामोशी में ही पास रहा,
ये सौदे अजब ख्यालों के, पहरे हैं इसके साथ साथ,
छल करते हैं ये जब मुझसे, सहना है मुझे खामोशी से.
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