मैंने पन्ना कोरा छोड़ा शब्द नहीं हैं जाने क्यों.....?
by Suman Mishra on Monday, 2 January 2012 at 01:30 ·
वर्ष ख़तम होने को आया, बाकी पन्ने रीते हैं,
शब्दों की सीमा भी ख़तम हैं, लम्हों में हम जीते हैं
सोचा था ये भर जाएगा, पर अब शायद कठिन बहुत,
स्याही काली लगती मुझको, क्या लिखना है इस पर अब,
बहुत कठिन है समय को पढ़ना वो खुद ही लिख देता है,
मन की कारस्तानी बस है ये, दूर का बस अंदेशा है,
कुछ तो वाह वाह में गुजरा, कुछ ऐसे ही क्या कहना
अब ये कोरे अछर लिखे, पढ़ लो सब जी है पढ़ना,
मुझे सुकूं हैं मैं जो लिखूं वो सच की ही स्याही हो,
कह लेना जो तुमको कहना , बात गयी ना आयी हो,
कर सकना तो बदल ही देना , अछर मेरे अपने हैं,
मैं अंत्येष्टि की परिभाषा सी, सत्य मगर बस अंत ही हूँ,,,
No comments:
Post a Comment