ये आपा धापी जीवन की , थोड़ा विचलित थोड़ा सा बस....
by Suman Mishra on Thursday, 22 December 2011 at 12:24 ·
मन सच्चाई को समझ ज़रा,
क्या लोग वही जो दीखते हैं,
मन मान रहा बस वही देख
ये रस्म रिवाज है दुनिया का.
मन भंवर बहुत ही ब्याकुल है,
ये जीवन उहा-पोह ही बस ,
बस लोग बात के बादशाह ,
ये जुबां और तलवार एक ,
रिश्तों के माने देख लिए ,
सब सम्मोहन की भाषा है,
मन मौन रहे तो अच्छा है,
मन बोल पडा तो क्या होगा,
बस शांत रहूँ ये सोचा है,
लोगों की मजलिस नहीं जमी,
शब्दों की चाशनी जैसी भी
हर तार -जाल सब उलझे हैं.
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