अलसाया सा सूरज भी है इंसानों की कौन कहे
by Suman Mishra on Tuesday, 17 January 2012 at 15:43 ·
अलसाया सा सूरज भी है ,इंसानों की कौन कहे,
भरमाया सा मौसम भी है, ओसों की बूँदें कौन छुए,
ये धुंध बहुत भारी पड़ती, सूरज की राहें घिरी हुयी,
आगे का रास्ता जाने क्या, ये रेनू कहाँ जाने बिखरी,
छल्ले उड़ते हैं भापों के, सब कोहरों में ही शामिल हो,
ये बरसेंगे बादल बनकर, या छन भर में ही काफिर हो,
चुभती है शीत की लहरी यूँ , मौसम की ही तासीर है ये
बस अब ना आना सर्दी तुम, इंसानों की जागीर है ये
ख़ामोशी के मंजर हैं बस, रातों की लम्बी पारी है
इस पंछी के पर हैं सिकुड़े,बस उड़ने की तैयारी है,
आवाज जमी धीमी धीमी बस हल्की सी है तान इसकी
अब आएगी वापस जल्दी, किरणों से है पहचान इसकी
ये गोलू भी चुपके चुपके है देख रहा है बाहर कुछ,
मन उछल कूद करता अन्दर पर बाहर बर्फकी बारी है
कम्बल की गर्माहट ने इसको बाँध लिया है अन्दर ही
बस थोड़े दिन की बात सही,क्यों ले अब माँ से पंगे ये
सोचो तो ज़रा जो काँप रहे, तन पर कपडे की कमी जहां,
पैबंद लगाए थे पहले अब तार तार हैं सिले कहाँ
ठठरी सा सा तन ,मुश्किल जीवन, अब येही लड़ाई जीवन की,
कब ताप हुआ, कब काँप रहे , मौसम की मार बेरहमी से,
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