एक ललक मन स्वर संगम की ...एक ललक मन नृत्य करे
This is a preview of your note.
Click the "Publish" button to save or "Edit" to make more changes.एक ललक मन स्वर संगम की एक ललक मन नृत्य करे
एक ललक जीवन थिरकन में बन मयूर बस ताल भरे
श्याम श्याम मन अम्बर प्रतिपल बन के दामिनी कौंध करे
एक बूँद जल की गति देखो पूर्ण ताल गतिमान करे
मधु मधु टपक रहे पुष्पों से, भवरे ज्यों गुंजार करे
देखत मेघ से नभ आच्छादित सूर्य कोप उस पार करे
झलक झलक टकटकी लगावत,हरित धरा को प्यार करे
एक थाप से झंकृत नूपुर करतल ध्वनि मनुहार करे
फूल पंखुरी बिखर बिखर संग साथ गयी वो बयार कहीं,
एक शाख वो जिस पर झूला झूले थे पखवार कभी
याद पलों में आती जाती शाम सुबह का क्या बंधन
हम यादों के गुलमोहर से झोंके के संग बहे येही.
बरखा की एक बूँद गिरी जब छम पायल ने शोर किया
उनके ताल से मिलकर घुँघरू पग पग पर ये समा बंधा
आओ एक तान तो छेड़ो, राग कोई भी मोहक हो
बजते ही सुर स्पन्दन हो , प्रानि प्रानि बस जीवन हो
सुर और स्वर की परिभाषा बस मन कर नृत्य और क्या है
धरा गगन के तर्पण से ये जीवन का रंग गहरा है
कब से पंथ निहार रही वो,दीप सूर्य या चाँद बुझे
प्रियतम की अभिलाषा कैसी ,बस पुकार ही साज बने
एक राग और एक शब्द बस ख़तम आलाप ज़रा सोचो
आओ प्रियतम क्यों ना आये, ठुमरी का प्रलाप सुनो
एक ही रट और मन की इच्छा नहीं अनसुनी कर सकते
प्रिय मल्हार के रस में डूबी तिश्नित मन बस नृत्य करे,
****
No comments:
Post a Comment