Friday, 17 February 2012

मैं वारी मन , मैं वारी तन , तोरा मन कित खोय गया .


मैं वारी मन , मैं वारी तन , तोरा मन कित खोय गया .

by Suman Mishra on Friday, 17 February 2012 at 16:47 ·
This is a preview of your note.
Click the "Publish" button to save or "Edit" to make more changes.


मैं वारी मन, मैं वारी तन तेरो क्या तू  बोल सही
म्हारी मुस्कानों में छुप के, मन मेरो अब कितै रह्यो .
अलकन पलकन रूप तिहारो, मैं खुद पे ही वारी हूँ
थारी प्रतिछाया है मुख पर श्याम पिया में थारी हूँ

दर्पण देखूं या मन देखूं एक एक छवि निरखत मैं
नाहे विलग मैं तोसे मोहनम काया से के पूछत है
दीपक की लौ सौं नयन ये निरखत मनवा कुछ ना बूझत है
दीप शिखा मैं इस बाती की , श्याम तो कारो दीखत है.



तरुवर वट की छांह भई, अब दीप्ति भई धूमिल म्हारी
रंग भयो अब श्यामल म्हारो,कजरारो काजर काढयो
श्याम श्याम रंग मेघ चढ्यो ज्यों नभ को रंग भयो कारो
खोजत हूँ मैं श्याम बावरी , एक रंग मन भर्मित भयो


रंग रंग को भेद भयो ई जगत रंग को स्वांग दिखावत,
एक मशाल जली जब मन में नयन मूँद बस श्याम रिझावत
पगन पगन मन बाँध लियो ज्यों ,स्वांस को द्वार ना मोको पावत
निरखत मुख मुख जिय धड्कावत नाम में ध्यान ना मन विस्र्रावत


पग नूपुर ध्वनि , झींगुर झंकृत, बरसत बूदन  मात भयो मन
कुसुम कुसुम अब पंखुरी खोलत, मादकता सुगंघ लपटे वन 
चन्दन डारी महकत लचकत, एक रेनू  कुम्हलाय गयो  तन ,
वल्लरी सी राधे लहरावत, शाख शाख बस श्याम को अंकन 
                            ~~~~~~~

No comments:

Post a Comment