अनूठा है राधा नाम ,,,कुछ भी कहो कृष्ण बन जाता है
बरबस ही मन मोह लेती है राधा की चितवन
लोग कहते हैं राधा नहीं है कोई नहीं है
फिर कृष्ण ही कहाँ रह जाते हैं इनके बिना
कृष्ण अधूरे से नहीं लगते राधा के बिना
हमने माना राधा है तो ,,,आज तक है राधा
मुरली की टेर नाही, बांसुरी अधीर नाही
हाथ में सुदर्शन है, गोल से घुमावत है...
मुख की मुस्कान कहाँ , धुप छाँव छाय रही
वज्र के सरीखे भाव , जाल फैलाए है
कितनी भी शब्दों को प्रत्यंचा पर चढावो
शब्द छूटेंगे तो पुष्प ही बनेगे
मोहन की मोहिनी नहीं अगर तो
वो मन मोहन कैसे बनेगे
वो चंचल हैं और वो चंचला
मधुबन में उनके नूपुर की झंकार है
झंकृत शब्द,,,किसके नूपुरों से निकले हैं
वृछों की डालियाँ और किस पत्ते की सरसराहट
कहाँ कोई अलग कर सका है
हमें तो बस उन स्वर से आसक्ति है
हवा किसे छूकर आयी है कहाँ जानना है
राधा हो या श्याम , एक हों या अलग
मन में सदियों से जुगल रूप ही बसा है
धीर अधीर सी विह्वल राधा
कितने रूप धरे मतवाला
मोहन की बस एक है राधा
अलग अलग रूपं की हाला
मत विखरो पंखुरी बन कर
फूल एक बस हो मधु का प्याला
रहो अधर पर श्यामित पंकज
श्याम ने नील वर्ण कर डाला.
मन विभक्त हो तन विखराए
<p>नाम एक जन जन विखराए</p> <p>नयन मूँद गर ध्यान में लाऊँ</p> एक रूप लौ ह्रदय समाये,,,,,
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