Monday, 19 May 2014

सूरज से आँखें मिलने दो (चैलेंज इश्वर को )

सूरज से आँखें मिलने दो (चैलेंज इश्वर को )

27 January 2013 at 12:28


वो जिसने बनाया हमको है
अरे तुमको भी ...
पता नहीं क्यों इतना इतराता है
पूजा में स्वाहा सब लेकर
सब धुंआ धुंआ कर   जाता है

हम रहे हमेशा निरे मूर्ख
कितने जन्मो को लेके चले
वो वही रहा, हम बदल गए
सब उसको अपनी करने दो

क्या हम इश्वर बन सकते हैं ?
सूरज की तरह दप दप जलते ?
उसने ये कब अधिकार दिया
हम ताप यहाँ बस सहते है




कोई कहता ये  नश्वर है
कोई कहता है सब माया
गर होता ऐसा ही कुछ तो
वो इस धरती पर क्यों आया

कहता है धरती जननी है
लिखता है सब उसमे बसते
फिर रहा अदिर्श्य इन नजरों से
बस मन में दरवाजे खुलते

ओ ! इश्वर ज़रा यहाँ आओ
देखो हम भी तेरे बन्दे
तुम डरते हो क्या अब हमसे
हम डरे नहीं गर तुम बख्शो

हो गया वैर लो अब हमसे
आयेंगे हम तुमसे मिलने
सूरज का रथ बस भेजो तुम
अधिकार हमारा अब तुम पर

ये वक्त नहीं अब सोचो तुम 
आना होगा इस धरती पर 
ये धरती तरस रही कबसे
बस ओस के आंसू से सींचो

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