Sunday, 18 May 2014

मिटटी के दिए....कितनी देर जले

मिटटी के दिए....कितनी देर जले

11 November 2012 at 22:54

आ गया कुम्हार दीपक
बन गया उपहार दीपक
जाने कितने तरह के हैं
द्वार के श्रींगार दीपक

कुछ तो मंहगाई की खातिर
कुछ उधारी के मुजाहिर
फर्ज है की पूरा कर दो
तेल कम , रंगदार दीपक

मैंने  रंग डाले हैं सारे
लाल नीले हरे प्यारे
रोशनी तो कुछ ही पल की
सजेंगे पुरे साल दीपक


रंगों की बारात लेकर
रोशनी का साथ लेकर
आ गए मैंदान में सब
बिछ गए है हजार दीपक

हर नजर में बस गए हैं
कुछ पुराने कुछ नए हैं
पंक्तियों में ये विछेंगे
कल के ओहदेदार दीपक

रोशनी और रंग मिले तो
थोड़ा सा ही संग मिले तो
आँख में भर के जो चमके
आंसू में किरदार दीपक



आज है तो कल मनेगी,
रोशनी सब घर सजेगी
मिटटी हाथों में लगी है
थोड़ा सा इन्तजार दीपक

आज जो उसने मनाया
दीप जो कुछ कम बनाया
साल भर चूल्हे के आगे
थोड़ा कम जादा पकाया

हर तरफ उल्लास है जो
हाथों से प्रकाश है जो
शक्ति है तो रोशनी है
ये भी हैं हकदार दीपक

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