ओ छितिज के पार वाले.....नील अम्बर पुष्प धारे
1 September 2013 at 15:37
ओ ! छितिज़ के पार वाले,
नील अम्बर पुष्प धारे,
परावर्तित रौशनी में भी,
श्याम तुम तो निरे कारे
दृग हमारे खोजते हैं ,
धरा से उस छितिज पारे,
तुम बसे हो गर कणों में,
क्यों नहीं चमके सितारे?
नीला अम्बर , हरी यमुना,
श्याम सी वृंदा भी कारी ,
वो कदम्ब अब भी वही है
तुम थे हरदम जहां ठाडे ,
सुर बहे थे माझी के संग,
तुम जो थे पतवार म्हारे,
रंग बदलो आ मिलो अब,
नैन सूर्य तुम पे वारे..
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