डर लगता है जग की नजरों से
डर लगता है जग की नजरों से
दहलीज से बाहर की नजरों से,
डर लगता है किसी की थपकी से
कोई सीमा ही नहीं है इस डर का
जन्म का सिलसिला लगातार
कहीं श्यामा तो कही श्याम
कामुकता और पिपासा नहीं विराम
गर्मी और सर्दी या कैसा भी हो तापमान
अब तो मलाला भी मलाल करेगी
खुद के देश को भूल कर
वो हमारी ही मिसाल देगी
कहेगी ,,,,उस देश में नहीं ..डर लगता है
आज हर तरफ बदहवासी है
तुम्हारी सलामती ही शाबासी है
जितनी साँसे है बस महफूज़ रहे
कहने को जिंदगी ज़रा सी है
हिदायतों का दौर है समझो
कदम कदम समझ के चलना है
अब तो ऊँगली भी थामना मुश्किल
कहीं जंगल शहर के रस्ते में
कहाँ अबला, अबोध, अब वो रही
हवस की एक कहानी ही तो
रोज ख़बरों में सांस लेती हुयी
नाम और शकल से गुमनाम रही
शहर की रोशनी धुंधली सी है
कही पे दर्द की बारिश है हुयी
सिमट गयी है खुद से खुद में ही
होश अब तक नहीं ...डर लगता है
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