Monday, 19 May 2014

सतरंगी सपने आखों में......सूरज ही तो है अब मुझमे

सतरंगी सपने आखों में......सूरज ही तो है अब मुझमे

12 November 2013 at 22:26




सतरंगी सपने आँखों में
सूरज ही तो है अब मुझमे
प्रहर प्रहर ये जलता मुझमे
तम का काम नहीं जीवन में

गहन अन्धेरा कब ठहरा है
मुझसे ही रस्ता पूछेगा ,
इन्द्रधनुष के रंग में ढलकर
मेरे सपनो में विखरा है


ये सतरंगी तार के धागे
रेशम से फैले हैं मन पर
बस उजास तक सब्र करो तुम 
गिन लेना रंगों को जी भर


आज धरा पर नयी ओढनी
विछ जायेगी शुभ मुहूर्त में
बाँट बाँट कर थोड़ा थोड़ा
आत्मसात हम इन्द्रधनुष में

कुछ आशा के दीप प्रज्वलित
छन छन दीप्ति बढ़ेगी इनकी
एक नया दिन नयी दिशा में
कितने सूरज चमकेंगे फिर

नहीं जलेगा जीवन अब फिर
हम तो सारथि रश्मि प्रभा के
पुष्प पल्लवित सूर्य मुखी से
स्वप्न सार्थक रेनू धनुष से.

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