उसकी दास्ताँ,,,,,थी,,,,उस किताब में
(अभी
हाल में मैं एक विवादित लेखिका की किताब पढ़ रही थी,,,,किसी ने कहा वो
थोडा .........लिखती है ,,,मगर जब मैंने पढना शुरू किया (पढना ही
था..आखिर इतने चर्चे सुने थे और अच्छा खासा मूल्य देकर खरीदा था उस किताब
को ) शायद ,,,बहुत दिनों बाद,,,मर्म, लज्जा , स्वतंत्रता का महत्त्व,
पुरुस समाज की प्रताड़ना नारी के प्रति, निर्भीकता और निरीहता , भाग्य और
अभाग्य का मिश्रण उसके खेल और देश के विभाजन में पिसती मानसिकता,,,,हलाकि
अभी पूरी नहीं पढ़ पायी,,,मगर उस पुस्तक के सलाम में मेरी कुछ पंक्तियाँ )
पाषानो से शुरू हुयी थी युग गाथा इंसानों की
आज भी है पाषाण तोड़ता, बात वही अरमानो की
सोना चांदी ताम्बा पीतल गल के फिर से निखर गया
मगर ये तन जो पञ्च तत्व का झटके से ही बिखर गया
जाने कितने वेद पढे , पर समझ ना आया जीवन क्या
एक सूत्र जो इश्वर से है, रस्साकशी बड़ा तगड़ा
जो जीता था वो हारेगा, हारके वो तो हारा ही
क्या रहस्य मुझमे इश्वर है, फिर भी रहा बेचारा मैं
एक दास्तां पढ़ते पढ़ते ,पलक मुंदी पर मन जागा
बंद हुए पन्ने रचना के, किरदारों के द्वार खुले
कुछ हलचल थी मौन के भीतर, शब्द सिले थे शांत हुए
बाँध दिया था मैंने उनको, क्या होगा गर ये विछड़े .
वो थी उसका जीवन भी था जाने कितने पात्र वहा
हर पन्ने पर एक युद्ध था, हार नहीं पर हारा सा
कहाँ कठिन है शब्द श्रंखला लिख डालो पन्ने भर लो
पर क्या जीवन लिख पाओगे, पात्र ज़रा बन कर देखो
खोजा क्या विशेष है तुममे या मुझमे क्या सोचूँ मैं
नाप सकूं गर आँखों से खुद "वामन"बन जग तोलोगे (वामन रूप- इश्वर का)
दीर्घ है जीवन, लघु सा ये मन, कितना विस्तारित होगा
काश !शब्द बन जादू जैसे , कवी कल्पित सच बन पाते
रेखा सी निश्वास है लम्बी , सीधी भी है , तिरछी भी
क्या होगा इनके संग जीकर, ये तो जीती मर मर कर
गरल वमन या सोम तृप्त हो , रचित भाव भरकर देखूं
बन जाएगा एक रूप सा, वो जो थी "उस किताब में "
पाषानो से शुरू हुयी थी युग गाथा इंसानों की
आज भी है पाषाण तोड़ता, बात वही अरमानो की
सोना चांदी ताम्बा पीतल गल के फिर से निखर गया
मगर ये तन जो पञ्च तत्व का झटके से ही बिखर गया
जाने कितने वेद पढे , पर समझ ना आया जीवन क्या
एक सूत्र जो इश्वर से है, रस्साकशी बड़ा तगड़ा
जो जीता था वो हारेगा, हारके वो तो हारा ही
क्या रहस्य मुझमे इश्वर है, फिर भी रहा बेचारा मैं
एक दास्तां पढ़ते पढ़ते ,पलक मुंदी पर मन जागा
बंद हुए पन्ने रचना के, किरदारों के द्वार खुले
कुछ हलचल थी मौन के भीतर, शब्द सिले थे शांत हुए
बाँध दिया था मैंने उनको, क्या होगा गर ये विछड़े .
वो थी उसका जीवन भी था जाने कितने पात्र वहा
हर पन्ने पर एक युद्ध था, हार नहीं पर हारा सा
कहाँ कठिन है शब्द श्रंखला लिख डालो पन्ने भर लो
पर क्या जीवन लिख पाओगे, पात्र ज़रा बन कर देखो
खोजा क्या विशेष है तुममे या मुझमे क्या सोचूँ मैं
नाप सकूं गर आँखों से खुद "वामन"बन जग तोलोगे (वामन रूप- इश्वर का)
दीर्घ है जीवन, लघु सा ये मन, कितना विस्तारित होगा
काश !शब्द बन जादू जैसे , कवी कल्पित सच बन पाते
रेखा सी निश्वास है लम्बी , सीधी भी है , तिरछी भी
क्या होगा इनके संग जीकर, ये तो जीती मर मर कर
गरल वमन या सोम तृप्त हो , रचित भाव भरकर देखूं
बन जाएगा एक रूप सा, वो जो थी "उस किताब में "
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