बंसरी की ओट लई , मोहनी मुस्कान दई , श्याम श्याम बोल राधे श्याम रूप एक भई
बंसरी की ओट लई ,
मोहनी मुस्कान दई
श्याम श्याम बोल राधे,
श्याम रूप एक भई
कारो सो काजरी,
नयनन लपटाय देख
श्याम रूप दर्पण सो,
सूरज से भानु भई
मिलन विरह तृष्णा को
प्रेम में मिलाय दई
पेय पात्र अग्नि रूप
ज्वलित दग्ध आज भई
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क्या तृष्णा है प्रेम शब्द ये
रूप है क्या इसका मनमोहक ?
जग के सुंदर सृजन का कारण
या फिर आंसू दग्धित मारण
प्रेम निहित है उस इश्वर में
प्रेम शब्द से मन का तर्पण
क्यों बहका है पल पल बोलो
नहीं कही ठहराव ओ ! मानस
ये बन में है या वीराना
ठौर कही भी कर लेता है
दूर कही जो इसे पुकारे
उसी मार्ग पर चल देता है
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पांखुरी मयूर लई
विह्वल मन बावरी
केश लटक माथे से
नयनन ते छाय गयी
एक परग धरनी सो
एक परग अम्बर पे
एक परग परत नाही
मन ही सकुचाय गयी
प्रश्न बनी लिखी गयी
राधा ध्वनी साथ रही
नाम और रूप शब्द
सबहिन् भरमाय गयो
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प्रेम अगर शाश्वत है
प्रेम अगर शक्ति है
प्रेम अगर भाव एक
प्रेम अगर भक्ति है
राधेय राधे हो एक हुए प्रश्न कहा ?
कितनी भी प्रेम कथा इनमे समाई है
जग वर्णित नाम रूप सबको है विदित येही
कृष्ण संग राधे ही मन मंदिर छाई है
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