कहाँ खो रहे हैं शब्द ये मेरे (श्री रविन्द्र सर के जन्मदिन की याद में )
(मेरी शक्ति, मेरे पथ प्रदर्शक हैं रविन्द्र सर - (थे) शब्द कहना मेरे लिए अपशब्द जैसा है , मैं कभी विश्वास नहीं कर सकती की ,,,इसके आगे मेरे पास शब्द नहीं है ..बस येही आशा है ,आशा नहीं विश्वास है की रविन्द्र सर हमारे साथ हमेशा रहेंगे -नमन अंतिम साँसों तक )
शब्दों के मैं भंवर बनाकर
खुद ही भ्रम का जाल बिछा कर
खोज रहे हूँ उन शब्दों को
जिनसे मिलूँ तो पार हो जाऊं
इन शब्दों की चमक कहाँ है
मिले पारखी तब मैं पूछूं
एक एक मोती अमूल्य है
मन-सागर में लगा दूं गोते
सोच रही हूँ शब्द हो ऐसे
अर्जुन के बाणों के जैसे
या फिर सिंह गर्जना जैसे
या हो शबनम बूँद की जैसे
कैसे हों अब तुम्ही बताओ
हे ! मन मेरे अब तुम्ही सुझाओ
क्या क्या और कैसे लिख दूं
मर्मों के आभास को भर दूं
शायद है कुछ खोया मुझसे
अपना ही एक सपना जैसे
हर शब्दों पर उसी का कब्जा
बंद द्वारों पर ताले तम के
अनुभूति भरी थी नख से शिख तक
अंजुरी भर कर उसे उलीचो
स्मृति पुष्प ना सूखेंगे अब
थोड़ी शबनम सिरहाने रख लो
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