Sunday, 18 May 2014

जीवन की गति धीमी है....तूफ़ान की तेजी को देख,,,

जीवन की गति धीमी है....तूफ़ान की तेजी को देख,,,

4 November 2012 at 22:48

शोर ही शोर  है चारों तरफ....लोग कहते हैं शोर तो होगा ही..आखिर जीवन है तो शोर तो होगा ही
मगर ये शोर अब  "चीखों" में बदल रहा है, मशीने कम शोर वाली अच्छी होती हैं मगर इंसान अधिक शोर वाले....
हर इंसान चीख चीख कर अपनी हौसला अफजाई कर रहा है, करवा रहा है, लोग उसका साथ
शोर  के साथ कर रहे हैं...वोट का मांगना शोरगुल, मनोरंजन की जगह शोरगुल, भगवान् का मंदिर -शोरगुल,
हक़ मांगने वालने जगह -शोरगुल....येही तो जीवन है चीखता हुआ इंसान -

अब इंसान चीख रहा है अपना गुस्सा  प्रकृति पर उतार रहा है, उसके दायरे में रहने वाले जानवरों पर
उतार रहा है तो प्रक्रति भी अपनी चीख को नुमायाँ करते हुए अपना गुस्सा चीखने वाले पर उतार रही है
उसे क्या फर्क पड़ता है कौन कम चीखा और कौन जादा,,,,,दो या तीन दिन में जाने कितने चीखने वालों
को शांत कर के खुद मौन धारण कर चलती बनी,,,,और कह कर गयी और चीखो ,,,,कैसे चिल्लाओगे "
नहीं चिल्ला पाओगे...ताकत है तो चिल्लाओ ,,,मैंने तुम्हरी शक्ति को कबाड़ों में दफ़न कर दिया है
मेरे शोर के आगे तुम्हारा अस्तित्व कुछ भी नहीं है,,,,,




ये तस्वीर जिस पर मोहर है दरकते हुए शहतीरों की
ये तस्वीर जिस पर मोहर है आलम गीरों की
येही तस्वीर डूब कर किनारे लग ही गयी
अब वो निकले हैं इसे ढूढने या इसके जागीरों की


हमारे माथे की शिकनों पे कुछ तस्वीरें हैं
अगर तुम देख सको इसे बया कर देना

बता देंगी की किस वक्त चीख आखिरी थ मेरी
आँख के कोर में किसका वो अक्स उभरा था



मन तो करता है लहर लहर खुद में जज्ब करू
उसकी अथाह सी तरंग मन में बंद करू
एक चट्टान की दवात कलम पंखों सी
सागर की चीख को फिर कहीं नजरबंद करू

वो क्यूं दहाड़ता है , नियति के दस्तूरों सा
प्रलय की आंधी का  हिस्सा , मगर मगरूरों सा
ख़तम करना है तो वापस वो लौटता क्यों है
"गति का दम जो भरा - सफ़र आधा करता क्यों है "

एक कागज़ की  नाव गति कुछ धीमी धीमी
लहर जो तेज हुयी साथ उसके चल देगी
उसे कहाँ है पता , बस में उसके कुछ भी नहीं
मगर वो नाव है वो कुछ दूर पार कर लेगी

"विशेष"


उससे टक्कर की बात "नहीं नहीं" कभी नहीं
उससे मिलने पे मात "नहीं हम इंसान ही हैं"
मगर जो जमी पे खड़े हुए आज दम ख़म से
कहो तूफ़ान बने....ना ढहें रेत के  घरौंदे से

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