मौन का आर्तनाद ,,,,,(श्रधेय श्री बाला साहब को समर्पित )
कह देते हैं लोग अब तो दवा नहीं दुआ की जरूरत है...
हुजूम ,,,लोगों का हुजूम....
बड़े बडे लोगों की आवाजाही
शोर करना नहीं,,,ये अपराध है ..
क्योंकि सबके चेहरे पर " मौन का आर्तनाद"
साफ़ साफ़ दिखता है
कहता कोई कुछ भी नहीं
सब बेबस , मजबूर, मशीनों से विश्वास ख़तम
बस उस परम जगत नियंता को पुकार
"मौन आर्तनाद" इश्वर और मन का तारतम्य
खुद की अंत्येष्टि की तस्वीर का सामना
कुछ मन ही मन आवाहन, आदान प्रदान
कुछ भावी संभावनाओं , सपनो का साकार स्वरुप
कुछ रोशनी विलीन होती हुयी,
कुछ प्रत्यारोपित हुयी,,
"मौन के आर्तनाद " में बस इश्वर की मर्जी
आँखों का नम होकर फिर पत्थर बन जाना
जीवन और चिरंतन मौन का खेल देखना
बस इंसानों का हुजूम
"कोई तो कहे मैं इश्वर हूँ "
" कोई दावा तो करे मैं इश्वर हूँ"
" कहाँ हैं सब अजानो और शंख्नादों वाले"
"कहाँ है खुद को खुदा और इश्वर मानाने वाले"
"कहाँ हैं खुद को कुबेर कहने वाले "
"कहाँ हैं निरीह पर बज्र चलाने वाले"
अरे ! ये क्या दृश्य है,
हमारे मौन का ये खामीयाजा ,
हमने कितनी आवाज लगाई उसे
उसने नहीं सूना,
"फिर मौन या मन से विश्वाश तो उठेगा ही"
मगर वो बार बार अपना अंदाजा करा ही देता है
एक शरीर वतन के तिरंगे से लिपटा हुआ
इस जमीन , धरा, धरती, माँ का पुत्र है
येही वस्त्र जीवन के आगमन का वस्त्र है
येही आकांछा है उनके अगले आगमित सन्देश जैसा
मैं आऊँगा येही वापस
तुम सब मेरे हो , मैं कहाँ तुमसे अलग हूँ
तुमने मौन रहकर आर्तनाद किया मेरे लिए
मैं भी तो साथ रहा तुम्हारे
अब अशक्त हो गया था मैं
वापस नव शरीर ग्रहण करूंगा...
नव देह धारण कर चुका हूँ
मेरी अनुपस्थिति कहीं नहीं है
बस बस उस मौन में हूँ
उसकी आवाज वापस लेने जा रहा हूँ
तब तक इस देश को सजा कर रखना
कभी ऐसा मत करना की मैं जब वापस आऊँ
मैं अपनी माँ धरा को वापस वैसे ही पाऊँ,,,,,
मैं तुम्हारा हूँ.,,,,तुम हमारे हो,,,,माँ धरा ,,,को सलाम
मेरा सलाम तुम सबको
बस इन्तजार करना ,,,मगर मेरे कर्मों को अंजाम देते रहना
सपने मैं देखता नहीं था
कर्म पर विशवास था,,,,उसे अधूरा मत रखना
जय हिन्द,,,,,
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