Wednesday, 28 May 2014

संबल

ये जमी बंट चुकी है,
आसमा पर भी कई आंखें हैं
बस परिंदों का आना जाना
या फिर जीवन का आवागमन

मत बांटो इस सत्ता को
खुशियों की परिधि को
थोड़ा और बड़ा करो
नि:श्वास छोड़ता इंसान
अब आसमा ना देखे

बढ़ो एक कदम आगे
मिलाकर हाथ शक्ति दो
संयम की मोहर थमाओ
खुशी की जागीर नाम करो
ताकि उसे विश्वास हो
दुःख में वो अकेला नहीं ...

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