Sunday, 18 May 2014

सुबह की ये अरुणिम तरुनाई , क्यों नहीं रहती दिवस परे तक`

सुबह की ये अरुणिम तरुनाई , क्यों नहीं रहती दिवस परे तक`

30 October 2012 at 12:20


जीवन में बदलाव निश्चित है,,,मगर रंग तो वही रहते हैं,,.. हमारे पुराने गायक या गायिका  जो आज भी हमारे बीच में हैं अपनी  सुरीली आवाज से गीत का  पाशर्व
गायन करते हैं तप हमें कहीं भी उनकी उम्र का अंदाजा नहीं होता,,,बस वही रंग परिलाछित होते हैं जो हमारा मन ग्रहण करना चाहता है,,,मगर प्रकिरती वो अपने रंग

बदलती रहती है,,,जानते हैं क्यों .......क्योंकि वो कृत्रिम नहीं होती....उनमे भी जीवन होता है,,,उनसे हम्मे जीवन संचारित होता है,,,,जहां जीवन है वहाँ बदलाव निश्चित है

क्योंकि इस जीवन के धागों का एक सिरा किसी और के हाथ में होता है जिसे हम जगत नियंता कहते हैं,,,,


अरुणोदय का समय देख , नव प्रकाश रेख सेंक,
नेत्र खोल भर ले दीप्ति, निशा की कालिमा फेंक
कदम जो थे रुके थके, मान में न गति जो टिके
गति को दे मान अभी, खुद का हो सम्मान तभी

बदल कर जो रूप नया, जी रहे हैं नयी प्रथा

कोपलों की तरह चमक, आने दे सूरज की धमक

येही तो जीवन की लहक, सुरभि भी ले जाए महक
फैलने दे उसे ज़रा, कीर्तिमान की हो चहक



नयन का सम्मोहन ही था, सूर्य रुका हुआ वहाँ,
बढ़ नहीं पाया ज़रा सा, शक्ति नयन एक जहां
रुकने का रिवाज ना था, गति का भी सार ना था
तोड़ कर बंधन बढ़ा वो, चाँद का था राज्य जहां

नयन बाण सींच ले तू,  रौशनी को खींच ले तू
पथ को बुहार आज, स्व-गति को संवार आज
खोल मुट्ठियों को आज, बोल मन के सुप्त राज,
नव श्रृंगार नव विहान, सूर्य को दे आज मान




जो उठा था लहर लहर, आज वो छिपा है अतल
नव दिवस कलरव प्रमाण, दिवस कह या कह विहान
शब्द खोज मन्त्र सिद्धि ,इन्द्रियों की आत्म वृध्ही
ठोकरों से कर प्रहार, तोड़ कालिमा के द्वार.

गति नहीं तो मरण वरण, सूर्य को तू मान ग्रहण
पथ नहीं कठिन कहीं भी , खुद को ले तू खुद की शरण
कोई तो आयेगा राह, पूछेगा क्या तेरी चाह
उदित हर दिवस की तरह, कर दिशा में प्रगति भ्रमण

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