कहते हैं खुशबू बनके रहो - तुम पुष्प सरीखे ही रहना
वो मिलना याद अभी तक है
वो पहला शब्द प्रणय का भी
फिर दूर हुए दूरी कितनी
कहते हैं खुशबू बनके रहो
महकेंगे उनकी यादों में
हो नाम मेरा फरियादों में
गर मिले नहीं तो क्या गम है
कहते हैं खुशबू बनके रहो
मन पर्ण सा बिह्वल इधर उधर
उड़ता है वन वन घबराकर
खुशबू खोयी मौसम बदले
कहते हैं खुशबू बनके रहो
अब तो वो पांखी बचे नहीं
सब उनके बसेरे टूट गए
हम झूले थे बन पांखी से
अब तो वो हिलोरे रूठ गए
वो दूर देश में बसा हुआ
शब्दों के जाल सा बुना हुआ
उसकी सब बातें भूल गयी
खुशबू का साथ भी छूट गया
अब श्वेत श्याम सा दर्पण है
उसका चेहरा मेरा मन है
यादों के झूले लगे हुए
कुछ पुष्प सूख कर गिरे हुए
मैं बाट निहारूं युग युग से
शायद जन्मों का रिश्ता हो
उसने तोड़ा तो भान नहीं
उसकी राहें अरमान रही
तुम आओगे ये तय ही है
खुशबू की कसम ये सच ही है
माना की रंग नहीं कायम
पर सुरभि सुवासित वही तो है
जिस पल तुमको पहचाना था
वो पुष्प ही था जो माना था
स्वीकार लिया था तुम्हे वही
अब पुष्प सा ही मन में खिलना
तुम पुष्प सरीखे ही रहना ,,,
No comments:
Post a Comment