Monday, 19 May 2014

वक्त के बाद मिलेंगे तुमसे

वक्त के बाद मिलेंगे तुमसे

12 April 2013 at 15:56

वक्त के बाद मिलेंगे तुमसे
ख्वाहिश थी तुम्हारी मगर इस जनम नहीं
जीवन बंधन में बंधे हैं हम
और तुम भी शायद
ख्वाहिशों के अम्बार हैं जीवन में
उसमे तुम्हारा ख़याल ही नहीं रहा
क्या कहा ? तुमने पुकारा था सदियों से
शायद मैंने ही नहीं सूना था ,
पर्वतों की ऊंचाई, नदियों की गहराई
समुद्र की ऊंची लहरें
सब को पार करना पड़ता है आवाज को
मुझ तक आते आते छीड हो चुकी थी
शायद नहीं सूना होगा मैंने

कभी कभी मन को शांत करना पड़ता है
सारी दुविधाओं को एक तरफ रखना पड़ता है
शोर से दूर , बस हवा और बादल के साथ
शांत नदी के शांत पारदर्शी जल के साथ
किनारे पर बैठकर तुम्हारी आवाज सुनने की कोशिश में
हल्की हल्की सी दस्तक मन पर होती है
एक छन लगा था मुझ तक पहुचने में
मगर ऐसा कहाँ संभव है अब
तुम पुकारते रहे उस छोर से हमेशा
कोशिश करूंगी पार कर आने की
इस युग में इस जीवन को जी तो लूं



एक सूखा हुआ फूल अभी भी पन्नो में हैं
जिनमे से दम घुटने की आवाज आती है
पन्नो से आजाद होना चाहता है
कहता है स्वतन्त्र कर दो मुझे
दफ़न करने से क्या फायदा
मुझे देखकर यादों को हवा मिलेगी
मुझसे हमेशा नाराज रहता है
आज उसे आजाद कर ही दूं क्या ?

मगर तुम्हारी आवाज की बे-दखली
मत करना आजाद उस फूल को
मेरी आवाज टूट जायेगी , बिखर जायेगी
अस्तित्व बचेगा ही नहीं , ख़तम हो जाएगा
मगर ये क्या ? ये सूखा फूल , फिर से ताजा हो गया
मेरे आंसू की बूँदें उस पन्ने पर ?
शायद खारे जल से जीवन पा गया
नहीं अब मत पुकारो मुझे
मैं अलग हूँ , बिलकुल अलग तुमसे
तुम फूल में हो, अल्प जीवन के साथ
मैं दीर्घ जीवन के साथ
मैं इस वक्त के साथ हूँ , हमेशा जब तक हूँ
तुम मिलना मुझे वक्त के बाद ये वादा है मेरा

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