Monday, 19 May 2014

शब्द नहीं निः शब्द हूँ मैं ( काश ये शब्द उन दरिंदों को फांसी दे सकते )

शब्द नहीं निः शब्द हूँ मैं ( काश ये शब्द उन दरिंदों को फांसी दे सकते )

29 December 2012 at 12:24



क्या कहूं निःशब्द हूँ मैं
जन्म से अपशब्द हूँ मैं ?

क्यों मैं जन्मी नारी बनकर
अब नहीं ! करबद्ध  हूँ मैं


क्यों यहाँ अभिशाप भुगतूं
क्यों जनम का श्राप भुगतूं,
क्यों मेरी लाचारी बेचारी
क्यों जनम का पाप भुगतूं


मुझमे शक्ति मुझमे  श्रध्हा
क्या गलत मैं करू  पर्दा
क्या पुरुष की जाती निर्मम
जानवर  या कह दरिंदा



सत्य हो गर माँ कहे ये
मार ऐसे पुत्र जने जो

खुद के हाथों  दे वो फांसी
ह्रदय से खुद माँ कहे ये


कब कहाँ स्वीकार किसको,
जीत कर भी हार सबको
हर परिंदा पंख काटे
दे बनाकर  हार इसको

क्या येही वो जमी दैविक
तंत्र और मन्त्रों से सेवित ?
क्यों नहीं जीवन की रछा
क्यों यहाँ नारी की दुर्गति




एक एक आंसू की बूँदें
गिर के विष बन जायेंगी जब
बेल विष की पनपने दो,
मत करो आह्वान अब कुछ


ऐसे कुत्सित लोग जब ये
दग्ध  होंगे वासना से
मृत्यु का आह्वान होगा
नया युग निर्माण होगा

चीख पर रक्खों नियंत्रण
कर्म का अंजाम होगा
तुम नहीं नारी यहाँ पर
मृत्यु में बस प्राण हो तुम....

समझ में नहीं आता जिस देश में बडे बडे हॉस्पिटल हैं वही ये सिंगापुर कबसे इतना उन्नत हो गया, क्या देश की आवाज को मंद करने की साजिश थी, जिस देश के राष्ट्रपति के पुत्र को हमारी आवाज में सिनेमा की चमक दमक दिखाई दे रही है,,,,वो क्या देश की सेवा और नारी जाती का सम्मान करेंगे.....जल्लाद और देश की आवाज जी सर्वोपरि है इन दरिंदों के लिए,,,,इन नेताओं के लिए तुरत फुरत निर्णय हो जाता है और उन दरिंदों को सजा देने के लिए इतना समय,,,,,,शर्म से डूब मरो,,,,,,

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