Monday, 19 May 2014

"और कौन जानेगा"

"और कौन जानेगा"

13 December 2012 at 11:17


तुमसे कहनी है कुछ बातें ,
कह दूं क्या मैं ...नहीं रहने दो
पूछोगे जब तुम मुझसे
दिय की बाती बोल पड़ेगी.....
"हर दिन उस से आँख है मिलती"
"और कौन जानेगा "


उस परिचय में जाने क्या था
आज तलक अनजान से थे हम
एक मोहर रिश्ते की जैसे 
मगर नहीं अरमान से हैं कुछ 

धड़कन बेसब्री करती है
जाने क्या उसको जल्दी है
मेरी ना ना उसकी हां हाँ
हर पल प्रश्न में प्रश्न वही है
"और कौन जानेगा"

 

दिवस एक पर अलग अलग पल
कुछ उसका और कुछ पल मेरा
बंटकर भी तो नहीं बंटा जो
सुबह, शाम, तम -बस भ्रम तेरा . 


वो जो साथ है, पल रुकता है
धरती स्थिर , मन स्थिर ,
ह्रदय तरंगें उससे मिलकर

एक हुयी हैं उससे मिलकर
"और कौन जानेगा "





सोचा था कुछ कमल खिलेंगे
<p>तिर - तिर कर महकेंगे ऐसे</p> <p>कुछ पल के हिस्सों में हम तुम</p> कुछ यादों में स्वप्न तिरेंगे . <p> </p> <p>फिर भी बस ये शब्द ही समझो</p> <p>बाती और दिए की बातें</p> <p>ये उनकी ही प्रेम कहानी</p> नहीं कहीं भी अपना कुछ भी <p> </p>

ख़तम करो - ये येही पे बस अब
कुछ भी नहीं सही है इसमें
सब कहने सुनने वाले है
कोई पहल ना अंतिम कोई ......
सही कहा ..."और कौन जानेगा "

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