Monday, 19 May 2014

कल सपनो पर पैर पड गया, बिखर गए सब टुकड़े होकर ...

कल सपनो पर पैर पड गया, बिखर गए सब टुकड़े होकर ...

7 May 2013 at 14:47


कल सपनो पर पैर पड गया
बिखर गए सब टुकड़े होकर
बंद पलक भीगी भीगी सी
लगी जोड़ने उन टुकड़ों को

एक एक टुकड़े को छूकर ,
था एहसास मुझे उस पल का
जो बातें करते थे मुझसे ,
आज थे विखरे रुसवा होकर

कुछ पलाश के फूल से हलके
दग्धित थे वो अग्नि शिखा से
टुकड़े थे वो सृजन सरीखे
छुई मुई से सिकुड़े छन में



चेहरे पर शिकनों की छाया
पल पल उनका  जाना आना
लकों के पीछे की घटना

चेहरे पर आकर लिख जाना,

सुबह और बस एक उबासी
चेहरे पर शब्दों की कहानी
धुल जायेंगे स्वप्न लिपि के
खोल द्वार पलकों के तिमिर से



हर जीवन स्वप्नों की कहानी
आज है मुखरित कल है जबानी
हर स्तर पर स्वप्न अलग से
सब कुछ जैसे प्रेम कहानी

छीनित काया, दुर्बल सा वह
स्वप्नों की किरचों सा फैला
हर टुकड़े में घाव भरे है
तभी ना सोया सुबह का भूला

जागी आँखों से देखा था
आज तलक वो स्वप्न ना जागा 
अब चिर निद्रा ले आयेगी
स्वप्नित मन का उड़न खटोला.///

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