Monday, 19 May 2014

बरसात कैसी कैसी

बरसात कैसी कैसी

4 April 2013 at 11:31

हर बार की बरसात में वो बात नहीं है
पानी की बूँद जल गयी फ़रियाद वही है
पहले तो नाव कागजों की तैर जाती थी
कुछ दूर तलक नजरों में फिर दूर जाती थी
अब कहा मवस्सर हमें वो बूँद का रेला
पलकों पे ठहरी बूँद अब इफराद नहीं है !!


उफ़ वो कहानिया जब आँखें भीग जाती थी
बीते पलों को पास लाके सींच जाती थीं
लगता था वो किरदार कहीं मैं ही तो नहीं
जो पास नहीं उससे मिलकर रीझ जाती थीं
बारिश में धुली सी सड़क अब याद ही नहीं
क़दमों के निशा ठहरे हैं ये वाक्यात ही नहीं





तुमसे मिले थे जब जूनून था बहुत जादा
हर दिन मलाल था नहीं मिल पाए आज भी
सुनते हैं कही दूर थी बारिश गजब की यूँ
पर यहाँ तो बादल जमे थे बर्फ की तरह
पत्थर पे बूंदों ने कई प्रहार थे किये
फिर भी नहीं टूटे , कोई दरकार ही नहीं

अब भी कहीं सूना है बारिश थी झूम कर
बौछार बहुत तेज थी आकर पडी मुझपर
एक बूँद ठहरकर कहीं कुछ  देर थी रुकी
लगती थी टूटे शाख सी, भटकी सी सहर पर
अंजाम होगा क्या मिलेगी धूल में जाकर
फिर से मिलेगी मुझसे शायद बात येही है 



बरसात कैसी कैसी ,,,

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