Monday, 19 May 2014

अस्मिता हमारे देश की....कल का सूरज बादलों के पीछे नहीं छिपना चाहिए,,,,,,

अस्मिता हमारे देश की....कल का सूरज बादलों के पीछे नहीं छिपना चाहिए,,,,,,

31 December 2012 at 14:14


एक लड़की, एक महिला , एक छोटी बच्ची
शर्मनाक स्थिति  अस्मिता का हनन
नारी और पुरुष प्रधान समाज
बड़े बडे तबकों पर आसीन नारी और पुरुष
बेरोजगारी की मिसाल आवारा पुरुष और स्त्री भी   शायद 
पैसे की ताकत पर कई रिश्तों का मालिक पुरुष
पेज ३ पर कई कई रूपों में स्त्री और पुरुष
विदेशी ज्ञान बघारते स्त्री और पुरुष
देसी संस्कृति को नकारते स्त्री और पुरुष
संस्कृत के श्लोकों पर जबानो का लडखडाना
फ़िल्मी गानों पर शब्दों की खिचडी बनाते स्त्री और पुरुष

क्या अस्मिता हनन होने के बाद ही देश याद आता है,,,,


कॉलेज से सीधे थियटरों की तरफ कदम बढाता स्त्री, पुरुष

अपने त्योहारों को बड़े बुजुर्गों को समर्पित करता स्त्री पुरुष
अंग्रेजी त्योहारों की मदमाती शाम, रात को दिन बनाता स्त्री और पुरुष
देसी गानों में द्विअर्थी शब्दों को गुनगुनाता स्त्री पुरुष
काव्यिक भाव के प्रवाह को रोकता हुआ स्त्री और पुरुष
सड़क के फुटपाथों पर रोजी रोटी कमाने वाले स्त्री पुरुष
और वही पर मनचले छींटाकशी करते पुरुष बनाम स्त्री और पुरुष

कॉलेज की किताबें साथ में मगर गंतव्य और मंजिल कहीं और
स्वतन्त्रता में पहनावा, दोस्ती, स्वछंदता की दुहाई देता स्त्री पुरुष
अलंकारों की उपमा नहीं अभिनेत्रियों/अभिनेता से प्रभावित स्त्री पुरुष
माँ बाप की विरासत -पुराने विचारों को धता बताता स्त्री पुरुष
बस येही ,,,,,,,क्या अस्मिता हनन होने के बाद ही देश याद आता है,,,,




नए सूरज को देखने की किसे फुर्सत है
हैंगओवर देर से ख़तम होगा
थक गए थे नए साल के अँधेरे की रंगीनियों  में

उजाला सूरज का नहीं बल्बों की रोशनी में जादा है
जितनी  चाहो उतनी ही रोशनी मुहैया होगी
डांस फ्लोर पर तो एक दूसरे को पहचानना भी नहीं चाहिए

tap डांस में महारत हासिल है tap करो और अपना लो
एक दूसरे को जानना जरूरी नहीं
मगर सड़क के किनारे पडी पीडिता को पहचाना नहीं
जब हमने पहचाना तो दामिनी भूल गयी
उसने अपने कानो को बंद कर लिया चीखों से
अब क्यों चीख रहे हो ,,,,पहले क्यों नहीं चीखे
मैं पहली शिकार तो नहीं थी इन दरिंदों की,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,???????????????????????????????????????????

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