Sunday, 18 May 2014

सृजक === इश्वर , सृजक==आधुनिक नेता

सृजक === इश्वर , सृजक==आधुनिक नेता

वो सृजक बन लूटता है
धुप बत्ती दिए बाती
हम सृजक बन खा रहे है
अपनों के साँसों की बाटी

वो सृजक बन रीझता है
दया की पुकार ही पर
हम सृजक बन रीझते हैं
नोट की मल्हार खुद पर

वो सृजक मन में है बसता
वक्त से ना कोई रिश्ता
हम सृजक एक आशियाना
द्वारपालों का है दस्ता

वो सृजक मर्जी का मालिक
कर्म का रखता है जोखा
हम सृजक कर्मो से दुष्कृत
हर तरफ बस येही देखा

वो सृजक जो दृश्य देता
वेद के जरिये धरा पर
हम सृजक दावानलों से
जल रहे हैं ख़ाक बन कर ...

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