शंख और डमरू निनादित .. हिमगिरी मस्तक झुका लो
शंख और डमरू निनादित
हिमगिरी मस्तक झुका लो
आ रहे शिव वरन करने
पर्णिका तेरे दुवारे ..
तप तपस्या, कठिन जीवन
एक ही वर के लिए था
क्या नहीं विस्मृत हुआ था
सती का जलता हुआ तन ?
धधकती थी अग्नि मन में
शिव प्रलयंकारी बने थे
नव वधु से मिलके भोले
धधकती हर बात भूले
देव देवा महा देवा
हर तरफ जयकार के स्वर
भोले है पर मन के देखो
विश्व का अधिकार इनपर
विष या अमृत क्या फर्क है
प्रेम से बस अर्पिता हो
गौरी के संग मगन होकर
कर दिया सब कुछ समर्पित
ज्वल ज्वला से दग्ध होकर
कब उठेंगे नृत्य भयंकर
शिव नमन है आज तुमको
इस धरा पर तुम हो सुखकर
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