अमृत या जहर,,,
क्या भेद है इन दोनों शब्दों में "अमृत या जहर "
दोनों ही एक दूसरे के परिपूरक हैं
शिव ने जहर पीया और देवों ने अमृत
मगर देव शिव के अधीन ही रहे हमेशा
हर बार शिव ने देवताओं की रछा की
क्या फर्क रहा उस विष और अमृत में
साग पात खाकर बीमार हो गए
जीवन किसी के अधीन हो गया
सहारे की जरूरत हर कदम पर जरूरो थी
दवा का असर धीरे धीरे ,मगर हुआ तो सही
सूना है उस दवा में जहर की कुछ मात्रा थी
और उसीसे मेरे चेहरे पर मुस्कान आ पायी
आखिर जहर मिलाकर जीवनदायी पेय बन गया
विष तो विष ही बनाएगा,,,,क्या फर्क रहा उस विष और अमृत में
जीवन सीधा होता तो कितना अछा होता
जन्म से मृत्यु तक संघर्ष के बिना
सब का अधिकार सब पे होता
सरहदों की बात, जाती धर्म का भेद भाव
ये सब बातें सर्वोपरि और इंसान होना नाकारा सा
एक अफवाह उड़ेगी अरे ! "उसका इंसान होना सिद्ध हो गया"
शिकस्तों के दौर में कितनी बार आँखें भर आयी
कहते है अपनी हार पर वो जहर का घूँट पी कर रह गया
मगर आज वो सफल था,,,,क्या फर्क रहा उस विष और अमृत में
फर्क के मुहाने पर जाकर देखा तो कोई फर्क नजर नहीं आया
हार जीत या अमृत विष , क्या परिपूराज है एक दूसरे के
किसी का जीवन ख़तम , वो हार गया था खुद से
मगर उसकी श्रीन्खला ने उस अंतिम राख को प्रण बना लिया
लोगों की हेय दृष्टि के वार उसने झेल लिए सीने पर
कोशिश की अमृत को तलाशा और जो भी मिला पीया
कठिनाइयां आती गयी , जीवन जहर के करीब लगा
मगर उसका परिणाम वो सफल है ...क्या फर्क रहा उस विष और अमृत में
आज मेरे शब्द मुझे खुद सोचने पर मजबूर करते हैं
जीवन में अनियमितता ही जहर और अमृत का सन्देश है
कही ठोकर खाकर गिरे हम तभी हमने अपना आकलन किया
कैसे कह दें हमें बस जहर ही पीने को मिला,
हमने जितना जहर पीया वो अमृत में तब्दील होता गया
कमजोर सर उठाने लगे हैं, क्योंकि कमजोर ने जहर को अमृत में बदला
गड़े खजाने मिलने लगे हैं , विषधरों ने कब्जा कर के रखा था
बंद आँखों का आकलन असत्य नहीं, सत्य की और ले गया
कितनी मेहनत लगी थी, विष को पीने में मगर आज .क्या फर्क रहा उस विष और अमृत में
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