Monday, 19 May 2014

चीत्कार

चीत्कार

2 May 2013 at 12:52




मौन धूसरित चित्कारों से
खिन्नित मन क्या हंस पायेगा ?
एक कली खिल गयी तो क्या ?
पूरा गुलशन  क्या जस  पायेगा ?

फूल देवता के चरणों पर
कैसे हम अब अर्पण  कर दें ,
कितने परिवारों के आंसू,
चरणों में हम तर्पण कर दें

एक मौन चीत्कार कर रहा
लाखों मन धिक्कार कर रहा
हत्यारों को इंगित कर के
खुद पर अत्याचार कर रहा

 
छोड़ मौन संगीने पकड़ो ,
मुट्ठी को बांधो अब मन से
कब तक सूरज के पहरे पर
शांत चित्त अब पडे रहोगे

योग ,साधना , क्या है ये सब
कहाँ हंसी की शाख है फूली
कोई पुष्प ना खिल पायेंगे
एक एक कर कली है तोड़ी

तोपों के मुंह मत बांधो अब
ज्वलित द्वार का मार्ग खोल दो
चिंगारी या अंगारे हों
दुश्मन का घर बार तोड़ दो



देश कहाँ अब बसे दरिन्दे
कितने हैं नापाक इरादे
गद्दारी रक्तिम हो चली है
शेर बने हैं गीदड़ सारे

इस धरती की मिटटी रुसवा
कितनी घायल चीत्कारों से
एक एक कर पोंछूं  आंसू
या फिर ह्रदय वेदना गाऊँ ?

बे-रहमी गर उन्हें है भाती
निर्ममता हमको भी  आती
शोले बरसेंगे अब हमसे
दया , प्रेम अब नहीं सुहाती


गर वो कुचलेंगे फूलों को
रक्तिम कर देंगे हम धरती
याद रहे नापाक इरादे ..
कहीं रहो तुम ...नहीं बचोगे ,,,,जय हिन्द

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